रंजो गम की इस दुनिया में , न जाने कितनी वजहें है मुस्कुराने की
हसीन लम्हों से दिलशाद है जिंदगी, बस हमें आदत है भूल जाने की
जिसे देखो परेशां नजर आता है , नाराजगी है अब फितरत ज़माने की
किससे नाराज है जानते ही नहीं, बस नुमाइश है बेबसी जताने की
अक्सर चेहरों पे लगे नकाब हँसा करते है, फरेब के इस बाज़ार में
बहुत मुश्किल है अब गुल की पहचान , बहुत कांटे है इस गुलज़ार में
मुझसे ग़मगीन कौन होगा दुनिया में , मेरा गम सबसे संगीन है
ये दर्द तो बस एक बहाना है , एक फरेब है अपनों को आजमाने का